दरियाओं के आगे, समंदर में लहरें, अभी और भी हैं
तेरी ज़िन्दगानी के पहलु, बहुत गहरे, अभी और भी हैं
न ठहर जाना, किसी कुंचे को समझ, मंजिल अपनी
कितने ही इम्तेहां, तुझको तो निभाने, अभी और भी हैं
मुमकिन है, थक जायेगा, सम्भालने मे इस पल को
गौर कर, सकून के बहुत लम्हें, अभी और भी हैं
न टूट जाना तू, इंसानों के, नमुक्कमल इंतज़ाम से
बंद कर आँख, देख आसमां, उम्मीदें अभी और भी हैं
हो न रुसवा, ज़माने से, खाकर चोट मोहब्बत मे
हर दिल मे मिलेगा प्यार, चाहतें अभी और भी हैं
गम और तन्हाईयों से, तू यूं न, घबरा जाना कभी
जान ले खुशियों के, कितने ही मायने अभी और भी हैं ………
एक पुराना ख़त
पिछले हफ्ते जाने कहाँ गुम हो गया
लो, मेरा एक और दोस्त
मुझसे जुदा हो गया…………..
जो हैं हमारी बातो में, ख्वाबों में रातों में
उनकी जज़्बातों में शामिल नहीं हूँ मैं…
समझा जिन्हें मंजिल, तोड़ा उन्होंने दिल
कहते हैं उनके प्यार के काबिल नहीं हूँ मैं.
ओ दिल ना हो उदास, मैं हूँ तुम्हारे पास
जुर्म ‘है‘ उनका मगर कातिल नहीं हूँ मैं.
जब लीलेगा मंझधार, ना होगी नैय्या पार
उस बार ’हम’ कहेंगे, साहिल नहीं हूँ मैं.
हम उनके हैं करीब, पर फूटा ये नसीब
उनके सूर्ख होठों को हासिल नहीं हूँ मैं. ……………………
कतरा-कतरा
जो मेरी आँखों से बहता रहा
क्या पता
वह अश्क ही था या कुछ और
बूँद बूँद जो मेरे जिगर से रिश्ता रहा
क्या पता
वह लहू ही था या कुछ और
पल पल
जो आसमान से बरसता रहा
क्या पता
वह तमस ही था या कुछ और
सेहरा सेहरा
जिसे बुझाने को भटकता रहा
क्या पता
वह प्यास ही थी या कुछ और .....!!
घनी धुप में आ जाता है
तुमहरा
ख़याल अक्सर
और छा जाती है
तुम्हरी यादे
छाए की तरह ........
आग का द्हेकता
गोला भी ,
बुझ जाता है
शाम होने तक
पर नहीं थकती हो
तुम ......
अंधियारी रातो
को
टूटते बिखरते
ख्वाबो से अक्सर
डर के
सीने से लिपटकर सो
जात हूँ
तुम्हारी यादे ........
रात भी हार कर
सो जाती है
पर नहीं सोती हो
तुम ........
किसी को पता भी नहीं
मुझमे छुपकर
रहती हो
तुम ..........
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